अधूरे स्वाँगों के दरमियान : देशज मिट्टी से पनपी कविताएँ


सुधांशु फ़िरदौस आज हिंदी साहित्य जगत में एक जाना माना नाम हो गया है। 2021 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित फ़िरदौस युवा कवि हैं । मैथ्स का विद्यार्थी रहे फ़िरदौस के पहले काव्य संग्रह "अधूरे स्वाँगों के दरमियान" पर यह पुरस्कार मिला है।
किसी भी कवि या साहित्यकार के लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है कि प्रारंभ में ही उसे इतना बड़ा सम्मान मिल जाए तो भविष्य में उसे उस जिम्मेदारी को निभाना पड़ता है। युवा कवि फ़िरदौस की कविताएँ पढ़ते वक्त जिम्मेदारी निभाने वाली संभवानायें दिखलाई पड़ती है।

 मैं इनकी कविताओं पर टिप्पणी करूँ इससे पहले आप इनकी यह कविता पढ़िए और इस युवा कवि की अनुभवशीलता को पहचानिए। एक कवि जो अभी युवा है उसे अधूरापन से कितना प्रेम है देखिए-

"इतना प्रेम है अधूरे पन से/ कि अब कोई स्वाँग पूरा नहीं करना चाहता/ सुखी होना पाप है!/ एक छलाँग,/ एक बार में पूरा नहीं होता स्वाँग,/ अधूरा ही रहता है।"
यही नहीं जब कवि कहता है .."मृत्यु कवि के लिए एक छंद से दूसरे छंद में लगाई गई छलाँग है"२ तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कवि अनुभव के कोख से जन्मा है। हम कल्पना की उड़ान पर बहुत कुछ लिख सकते हैं। वास्तविकता तो अनुभव से ही आती है।
किसी भी रचनाकार को उसकी रचना से जानना ही उस रचनाकार की सफलता होती है। सुधांशु फ़िरदौस उन्हीं रचनाकारों में से एक है। इनकी कविताओं में गांव है, गांव की प्रकृति है। प्रकृति के साथ उठना-बैठना है। उस प्रकृति से प्रेम है। शहर है, पर शहर से कवि कुछ उदास सा दिखता है। कवि की यह पंक्ति देखिए जिसमें शहर की अलगनी पर उम्मीद सूखती हुई दिखती है --
"यहाँ उम्मीद सूखती रहती है/ अलगनी पर टँगे कपड़े की तरह / और आदमी टपकता रहता है/ बूँद/बूँद/बूँद/ पानी की तरह।"
इस प्रकृति प्रेमी कवि की एक कविता देखिए जिसमें वह अकेला होते हुए भी अकेला नहीं है। उसके साथ, उसका साथ देने के लिए पक्षी है -- "डूबते सूरज के साथ/ रक्ताभ होते आकाश का हल्का नीलापन/ मुझे मेरे अंदर इन्हें अतल गहराइयों में दुबो रहा है/ लगभग सारे पक्षी अपने बसेरों की ओर उड़ चले हैं/  नदी किनारे मछलियों से बात करने में मशरूफ/ एक छूट गया है अपने झुंड से/ अपनी व्याकुलता और उदासी के साथ/ आज की शाम मेरे साथ वही है।"
आज के कवियों की ही नहीं प्राय: हर किसी के जीवन में यह एकाकीपन उसे काट खाने को दौड़ता है। हिंदी साहित्य में अकेलेपन को लेकर बहुत कुछ रचा गया है और कविताएं तो प्रचुर मात्रा में रची गई है। यही कारण है कि प्रोफेसर मैनेजर पाण्डेय एक लेख में लिखते  है ..." आज के कवि को अपनी पुकार के उत्तर की उम्मीद नहीं होती, इसलिए कविता अपनी सहज तथा स्वाभाविक संवादधर्मिता छोड़कर एकालाप बनती जा रही है। लगता है कि आज के समय में कविता कवि के एकाकीपन की व्याख्या होने के लिए अभिशप्त है।"५
प्रेमपत्र सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका ही नहीं लिखते हैं। प्रकृति भी लिखती है। प्रकृति के सारे अंग लिखते हैं। कवि "प्रेमपत्र" नामक कविता में लिखता है-  "बादल डाकिए/ पेड़ पहरूए/ जंगल में अभी-अभी लौटी है/ गीदड़ों की बारात/ धनक के सात रंगों से/ आकाश ने लिखा है/ एक प्रेम पत्र"
प्रिय की यादों में पीड़ित होना हर किसी के लिए कष्ट कर होते हुए भी वह एहसास बहुत ही अनोखा और अलग होता है। कवि को अपनी प्रेमिका की याद आती है और उन यादों से जो दर्द पनपता है वह कवि के लिए किसी जमा पूंजी की भाँति है, संपत्ति की भाँति है। यथा-
"दुख के देवदार पर/ तुम्हारी यादों की बर्फबारी/ मैं टूटकर अब गिरा तब गिरा/ आज की रात आकाश में/ तारे लिख रहे हैं मेरे लिए कविता/ यह मीठा-मीठा दर्द ही मेरा सरमाया है ।"
उम्मीद एक ऐसी चीज़ है जो कभी समाप्त नहीं होती। हम उम्मीद के सहारे अपना जीवन बसर कर लेते हैं। ''फरिश्ता'' नामक कविता के अंतर्गत कवि ने उम्मीद ज़िंदा रखने का नयाब तरीका ढूंढा है--
"वह जानता था
वह कभी नहीं आएगा
फिर भी उसने उसके आने की अफवाह फैलाई
ताकि उम्मीद ज़िंदा रहे।
"

इस प्रकार एक की और कविता देखिए जिस में कवि ने लिखा है-  दुख के आकाश में / प्यार का चीरा लगाकर / उम्मीद ने पूछा ; अब कैसा लग रहा है।"
सुधांशु फिरदौस ने एक तरफ जहाँ, 'इलाज', 'दोस्ती', 'प्रेम गली', 'उसका दुख' , 'कहाँ हो दोस्त', 'फ़रिश्ता', 'चांद क्या करेगा' 'क़याम', 'बेघर' जैसी छोटी कविताएँ लिखकर व्यापक संदेश दिया है। वहीं दूसरी तरफ 'महानायिका', 'बगुला भगत का जनतंत्र', 'सूखते तालाब की मुरगाबियाँ', 'कालिदास का अपूर्ण कथागीत', 'मेघदूत विषाद', जैसी लंबी कविताएँ लिखकर शैली तथा अनुभव की विशदता का दर्शन कराया है। यह सभी कविताएं लंबी होती हुई भी पाठक को एक सूत्र में बांधे रखती है। 'कालिदास का अपूर्ण कथागीत' काव्य से ये पंक्तियां देखिए-
"लेना ही पड़ता है/ कालिदास को एक न एक दिन संन्यास/ 'ऋतुसंहार' से 'अभिज्ञान शकुंतलम्', तक आते-आते वह माँग ही लेता है मुक्ति/ नंदीग्राम के त्याग का उज्जैन के त्याग से होता उपसंहार/ मल्लिका का सान्निध्य हो या प्रियंगुमंजरी का सहवास/ विरह हो या संसर्ग एकाकी कालिदास/ एकाकी ही रहता है।"१०
कवि ने अपने से पहले के कवि यानी कालिदास आदि को पहचाना ही नहीं बल्कि उनको जीया है। अपने अंदर समाया है। जिससे इस युवा कवि की कविताएँ बहुत प्रखर, सघन और संयमित हो गई हैं। डॉ. अरुण देव ने ठीक ही कहा है..." सुधांशु फ़िरदौस की कविता में भाषा की शाइस्तगी और जनपदीय शब्दों का कुशल रचाव है, वे दृश्य के कवि हैं। इस संग्रह से हिंदी कविता में प्रकृति और जनपदीय जीवन की वापसी हुई है। उनकी कविता कालिदास और मीर दोनों से प्रभावित हैं और दोनों धाराओं का उनमें सौष्ठव और विकास दिखता है।"११
नये कवियों को प्रायः या डर रहता है कि उसे पढ़ेगा कौन। पर जब उनकी लेखनी से पाठक परिचित होता है तो उसे एख सुखद आश्चर्य होता है कि आज तक वह इस बिरले कवि पढ़ा क्यों नहीं? सुधांशु फ़िरदौस उन्हीं बिरले कवियों में से हैं।

संदर्भ ग्रंथ सूची -
१) फ़िरदौस सुधांशु, अधूरे स्वाँगों के दरमियान, राजकमल प्रकाशन, पहला संस्करण- 2020, पृष्ठ संख्या- 151
२) वही, पृष्ठ संख्या-126
३) वही, पृष्ठ संख्या-51
४) वही, पृष्ठ संख्या-14
५) पाण्डेय मैनेजर, हिन्दी कविता का अतीत और वर्तमान, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण- 2018, पृष्ठ संख्या- 209
६) फ़िरदौस सुधांशु, अधूरे स्वाँगों के दरमियान, राजकमल प्रकाशन, पहला संस्करण- 2020, पृष्ठ संख्या-17
७) वही, पृष्ठ संख्या-59
८) वही,पृष्ठ संख्या-63
९)वही, पृष्ठ संख्या- 68
१०) वही, पृष्ठ संख्या- 124
११)https://www.amarujala.com/kavya/halchal/famous-poet-sudhanshu-firdaus-got-bharat-bhushan-agrawal-award-2021



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समीक्षक - प्रेम कुमार साव

शिक्षा- पश्चिम बंगाल के बर्द्धमान विश्वविद्यालय में एम फिल हिंदी का शोधार्थी

पता - कोटा चंडीपुर , कोटा मोड़

पानागढ़, जिला- पूर्व बर्द्धमान 

Pin code- 713420

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर भईया❤️🌼

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद पढ़ने के लिए 🌼🙏

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