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Showing posts from July, 2020

प्रेमचंद जयंती विशेष

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साहित्य का उद्देश्य निबंध की समीक्षा प्रेमचंद, जिनको बचपन से ही पढ़ते आ रहे उनकी आज १४०वीं  जयंती है। उनकी प्राय: रचनाएं आदर्श से पूर्ण है। यथार्थ का आगमन उनके परवर्ती रचनाओं में मिलता है । जिसके कारण उनके साहित्य को आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी साहित्य कहा जाता है। हमें पता है कि उन्होंने लगभग ३०० अधिक  कहानियाँ लिखी हैं और १५ उपन्यास की रचना की है । उन्होंने कुछ बाल रचनाओं की भी रचना की है। आज हम इनके कहानियों तथा उपन्यासों पर बात न करके इनके साहित्य के प्रति वैचारिक दृष्टि को देखेंगे।        आज हम इनके द्वारा रचित निबंध "साहित्य का उद्देश्य"   की समीक्षा करेंगे जो मूल रूप से प्रेमचंद द्वारा १९३६ के प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्षीय संबोधन के रूप में दिया गया था । बाद में इसे निबंध के रूप में प्रकाशित किया गया। इस निबंध में लेखक साहित्य और साहित्यकार का समाज के प्रति क्या कर्त्तव्य है तथा साहित्य का सृजन क्यों होना चाहिए,आदि बिंदुओं पर एक सारगर्भित और प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत करते हैं।        साहित्य को प्रेमचंद "जीवन की आलोचना" मानते हैं अर्थात जीवन को कैसे और बेहत

तुम्हारा होना ( एक एहसास)

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रात बहुत हो चुकी थी। मैं पढ़ रहा था, किताबें इधर उधर बिखरी पड़ी थी । मैं उन्हें सहेज कर रख दिया अपने उसी अलमारी में जहाँ मेरे जीवन के सबसे अहम अंश "किताबें" रखी रहती है । 💛 मैं अब सोने के लिए अपने चारपाई पर हूँ। मैं सोने की कई कोशिशें कर चुका हूँ , पर नींद मेरी आँखों के आस पास भी नहीं भटकती है। कुछ ऐसा है जिसे मैं भूल रहा हूँ । तभी मुझे दिखता है वह डायरी जिसमें मैं स्वयं को सिर्फ तुम्हारे लिए सीमित रखा हूँ। उस डायरी में तुम ठीक उसी भाँति मौजूद हो जैसे मेरी हृदय में साँसे। मैं उठा, उठ कर उन पृष्ठों को खोला जिन पृष्ठों में तुम्हारे होने का एहसास सबसे तीव्र , जिसमें मैं भी हूँ पर तुम कुछ अधिक हो ,उन्हें मैं पढ़ने लगता हूँ_ 💚 "मैं धड़कन हूँ किसी के सीने की उनके बिना अब ख़्वाहिश नहीं है मुझे जीने की।"💚 इसे पढ़ कर ही मैं यादों की अतल गहराइयों में उतरता जाता हूँ , जिसमें मैं और तुम साथ हैं, एक वृक्ष के नीचे बैठ हम और तुम अपने सपनों की दुनिया में खोये है। तभी तुम उठ जाती हो यह कह कर