हिंदी दिवस विशेष

हिंदी; एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में

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आज हिंदी दिवस है। आज ही के दिन सन् १९४९ को हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था और आज भी यह राजभाषा के रूप में विद्यमान है।
हम, आप और सभी जानते हैं कि आज हिंदी सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विश्व के प्राय: हर देश में बोली जाती है और यह हमारे लिए गर्व की बात है  कि हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। चीन की भाषा मंदारिन दुनिया की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है पर एक रिपोर्ट के मुताबिक आज हिंदी इतनी लोकप्रिय हो गई है कि आने वाले दिनों में यह मंदारिन से भी ज़्यादा बोली जाने लगेगी। यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है कि जिस जो हमारी मातृभाषा है वह दुनिया की सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली भाषा है।



पर, हमारे देश में अब स्थिति उल्टी होती जा रही है । एक तरफ दूसरे देश के लोग हिंदी की संस्कृति आदि जानने के लिए हिंदी सीख रहे और भारत आकर शोध कर रहे वहीं हम भारतीय अंग्रेजी के पीछे भाग रहे । इसमें अंग्रेजी का कोई दोष नहीं यह सब भूमंडलीकरण का प्रभाव है जो आज सब देशों सर चढ़ कर बोल रहा है। भूमंडलीकरण ने हिंदी को भी बढ़ावा दिया है पर जिस हद तक आज हिंदी का सम्मान होना चाहिए नहीं होता। एक हिंदी जानने वाला व्यक्ति या कम अंग्रेजी जानने वाला व्यक्ति जब किसी अंग्रेजी जानने वाले के पास जाता है तो उसे एक असहजता महसूस होती है और उसके  अंदर एक प्रकार की घुटन महसूस होती है । वह स्वयं को हीन समझने लगता है और यह सोच लेता है कि अपने बच्चों को वह अंग्रेजी ही पढ़ाएगा। इस प्रकार की सोच ही हिंदी के लिए त्रासदी है। हम अपने देश में अपनी भाषा को खुलकर नहीं बोल पाते और कभी अंग्रेजी भाषा-भाषी मिल गया तो हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। हमें यह कमी ही दूर करना है । हमें अपनी भाषा पूरे सम्मान के साथ और गर्व से बोलनी चाहिए। वों कहते हैं न " अगर अच्छी अंग्रेजी न आए तो ऐसी हिंदी सीखिये की सभी आपको सुनते रह जाये।।"
हम जहाँ जन्म लेते हैं वहाँ कि भाषा हमारी मातृभाषा होती है और वह कुछ भी हो सकती है । भारत में आज सैकड़ों भाषाएं बोली जाती है और सबका महत्व अपने स्थान पर अलग और विशेष हैं। वह चाहे उड़िया हो, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, पंजाबी, मारठी या भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में मौजूद कोई भी भाषा हो सबका अपना व्याकरण है। सबका साहित्य है । पर जब हम हिंदी की बात करते हैं तो पूरे देश में आज के समय प्राय: ८० से ९० प्रतिशत लोग हिंदी किसी न किसी रूप में जानते हैं ।
और लगभग ६० से ७० प्रतिशत हिंदी बोलते हैं।



आजादी से पहले हमारे भीतर आजाद होने की ललक थी और ऐसे में हिन्दी ने ही सबको आजादी दिलाया । उसके साथ क्षेत्रीय भाषाएं भी थी पर हिंदी केंद्र में थी। और उसने जब हमें आजादी दिला दी तब हम धीरे-धीरे अंग्रेजी के गुलाम होते गए और आज हम पूर्णतः अंग्रेजी के गुलाम हैं। आज सरकारी हिंदी विद्यालयों में हिन्दी को उस रूप में नहीं पढ़ाया जा रहा कि बच्चा आगे जाकर अपना पूर्णतः विकास कर पाये और दूसरी तरफ अंग्रेजी की तो स्वयं ही सरकारी विद्यालयों में हालत खराब रहती है । ऐसे में गरीब घर के बच्चों को कोई समझाने वाला नहीं रहता । और उसे कुछ समझ नहीं आता , यदि स्वयं समझ गया और किसी तरह काॅलेज या विश्वविद्यालय पहूँच जाता हैं तो भविष्य में कुछ कर पाता है वरना पढ़ाई छोड़ देता है। बड़े घरों के बच्चें जिनके माता-पिता भले खाते हो हिंदी की कमाई और कहते हो कि हिंदी आजकल कम बोली जा रही पर स्वयं अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाते हैं।
यहां अंग्रेजी से ईर्ष्या आदि की कोई बात नहीं हमें अपनी भाषा को सुगठित, सुव्यवस्थित करना पड़ेगा। हमारी हिन्दी सबसे प्यारी है । यह समावेशी है। सभी भाषाओं का समावेश कर लेती है बिना किसी द्वेष के और हम उसका प्रयोग भी करते हैं दिनचर्या में।
आज हमें अपनी भाषा के लिए नित संघर्षरत रहना पड़ेगा।
इसमें लेखन के स्तर को और बढ़ाना होगा ताकि और लोग हिंदी के तरफ आकर्षित हो । इसे पढ़े। और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक हिंदी का विकास और समृद्ध रूप में हो।

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