अक्टूबर जंक्शन उपन्यास की महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ

 

अक्टूबर जंक्शन उपन्यास की महत्त्वपूर्ण पंक्तियाँ जो
हमारे जीवन से जुड़े हैं या किसी रूप में जुड़ सकते हैं।
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यह कहानी शुरू ही ना हुई होती। अगर उस वेटर ने अपना बिजनेस बढ़ाने के चक्कर में इन दोनों को साथ नहीं बैठा दिया होता। इस कहानी में वेटर का काम इतना ही था। अब वह इन का आर्डर देने के बाद कभी वापिस नहीं आएगा। आपने कभी सोचा है। रोज तमाम कहानियां ऐसे ही वह लोग शुरू करते हैं जिनको कभी पता ही नहीं चलता कि वह कहानी का कितना अहम हिस्सा है।

हर अधूरी मुलाकात एक पूरी मुलाकात की उम्मीद लेकर आती है। हर पूरी मुलाकात अगली पूरी मुलाकात से पहले की अधूरी मुलाकात बन कर रह जाती है। एक अधूरी उम्मीद ही तो है जिसके सहारे हम बूढ़े हो कर भी बूढ़े नहीं होते हैं। किसी बूढ़े आशिक ने मरने से ठीक पहले कहा था कि एक छटांक भर उम्मीद पर साली इतनी बड़ी दुनिया टिक सकती है तो मरने के बाद दूसरी दुनिया में उसकी उम्मीद बनकर तो मर ही सकता हूं। बूढ़ों की उम्मीद भरी बातें सुननी चाहिए। अच्छी लगती है, बस उन पर यकीन नहीं करना चाहिए। लेकिन यह सब बातें एक उम्र में समझ  कहां आती है।

कोई साथ बैठा हो, चुपचाप हो और चुप्पी अखर न रही हो। ऐसी शामें कभी कभार आती हैं। जब कोई जल्दबाजी ना हो कि कुछ ना कुछ बोलते रहना है। वरना तो अक्सर ही दिमाग पर प्रेशर होता है कि बातों को थामने ना दे। वह बड़ी अच्छी बातें करता है या वह बड़ी अच्छी बातें करती है के बजाय कभी कोई यह क्यों नहीं बोलता कि उसके साथ बैठकर चुप रहना अच्छा लगता है। किसी के साथ बैठकर चुप हो जाना और इस दुनिया को रत्ती भर भी बदलने की कोई भी कोशिश ना करना ही तो प्यार है।

हम इतनी झूठी जिंदगी जी रहे हैं कि हम दूसरे को चुप करवाते हुए अपने आप को भी चुप करवा रहे होते हैं। चुप कराने से जब सामने वाला चुप हो जाता है तो बेचैनी और बढ़ जाती है कि हम खुद कहां जाकर रोए और हमें कौन चुप करवाएगा?

हम कुछ काम क्यों नहीं करते और एकदम वही काम क्यों कर लेते हैं- इसकी कोई ठोस वजह कभी किसी को पता नहीं चलती। एकदम हमारे अंदर वह कौन हैं जो बोल देता है कि रुको मत आगे बढ़ो कुछ नहीं होगा। हमारे अंदर वह कौन है जिसको हम बिल्कुल भी नहीं जानते। इसलिए शायद कहा जाता है कि हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है। हम सब लोग पहले से प्रोग्राम किए हुए वीडियो गेम का हिस्सा है जो चाहे गेम जीते या हारे एक दिन बोर होकर कोई हमारी पावर सप्लाई बंद कर देगा।

आदमी अपने पास्ट और फ्यूचर दोनों में पिस रहा होता है।

किसी पल को फ्रीज कर लेने की नाकाम कोशिश होती रहनी चाहिए क्योंकि हमें क्या बचाना था और क्या गँवाना था यह बात आखिर से पहले समझ ही नहीं आती।

कुछ भी हो अगर कोई लड़का किसी के सामने रो देता है तो वह सामने वाले के करीब अपने आप आ जाता है। लड़कियों के साथ भी शायद ऐसा ही होता है। साथ रोना साथ हँसने से ज्यादा बड़ी चीज़ है।


प्यार की कहानियाँ इसलिए प्यार करने वालों के मरने के बाद भी जिंदा रहती है क्योंकि उनके अंत में उम्मीद हो ना हो लेकिन उनकी शुरूआत एक सुई की नोक जितनी उम्मीद से होती है।

तारीख अगर तय हो तो एक बार नहीं आती। वह आने से कई दिनों पहले ही आना शुरू हो जाती है।

कोई लड़की या लड़का अगर पूछे कि क्यों मिलना है और सामने वाला अगर उसका बिल्कुल ठीक-ठीक  जवाब दे दे तो उससे कभी नहीं मिलना चाहिए। अगर कोई बोले कि "मिल कर देखते हैं", उससे जरूर मिलना चाहिए। मिलकर देखने में एक उम्मीद है। कुछ ढूंढने की, थोड़ा रास्ता भटकने की, थोड़ा सुस्ताने की। उम्मीद इस बात की भी कि नाउम्मीदी  मिले लेकिन इतना सोच समझ कर चले भी तो क्या खाक चलें!

एक वक्त के बाद प्यार में गुदगुदी होना बंद हो जाता है, लेकिन गुदगुदी में थोड़ा बहुत प्यार हमेशा बचा रहता है।

छुट्टियां तभी तक अच्छी है जब तक वह मुश्किल से मिलती है।

                         लेखक- दिव्य प्रकाश दूबे

कमाल की बात है वह लोग कभी घर बनाने में अपना एक  मिनट भी खराब नहीं करते जो कभी भी घर बना सकते हैं। यह जानते हुए कि यहाँ हमेशा नहीं रहना ऐसे में अपना घर बनाना और घर होना इस दुनिया का सबसे बड़ा धोखा है। यह भ्रम ऐसा ही है जैसे ट्रेन की सीट  को आदमी हमेशा के लिए अपना समझ ले। एक दिन स्टेशन आएगा और हम उतरने के बाद पीछे मुड़कर भी नहीं देखेंगे।

कई बार थोड़ी देर के लिए चले जाना बहुत देर के लिए लौट आने की तैयारी के लिए बहुत जरूरी होता है। चले जाने से पैदा हुई एक खाली जगह में एक नई दुनिया बनकर लौट आने की गुंजाइश होती है। ऐसे रिश्ते जो खाली जगह को सहेज कर नहीं रख पाते हो तालाब के पानी के जैसे बासी हो जाते हैं। कुछ रिश्ते को ऐसे ही छूना चाहिए जैसे ठंड में घास पर जमी ओस की बूंद को नंगे पांव छूते हैं। रोज सुबह बूंद नयी हो जाती है और बूंद को छूकर पाँव पुराने नहीं रहते। एक बूंद-- ओस, आंसू, नदी, समंदर और बरसात में ढलती हुई एक साल हो जाती है।

ज़िंदगी एक हद तक ही परेशान करती है। उसके बाद वह खुद ही हाथ थाम लेती है। जिंदगी ताश के पत्ते जैसे ही भरोसे का खेल है, जिनको होता है वह परेशान भले दिखे अंदर से परेशान होते नहीं। इसलिए खेल में पत्ते अच्छे हो या खराब जितने वाले आखिर ब्लाइंड में भी जीत ही जाते हैं। ज़िंदगी पर ब्लाइंड खेलने जितना भरोसा रखना ताश के पत्ते पर बाजी लगाने जितना आसान होता नहीं, इसलिए लोग हारने से बहुत पहले ही हार चुके होते हैं।

हम सबके अंदर एक किताब होती है। वह बात जो चैन से सोने नहीं देती। वह बात जो जागने के बाद ऑफिस के रास्ते में बार-बार याद आती है। वह बात जो कॉलेज में बोरिंग लेक्चर के बीच में याद आती है। वह बात जो समंदर के किनारे टहलते हुए सबसे पहले आकर पैर से टकराती है। वह बात जो किसी पहाड़ी रास्ते पर किसी छुट्टी के दिन बार-बार पेड़ से झाँकती है। वही बात ही तो आप की कहानी है। वह कहानी जो सब के दरवाजे पर कभी ना कभी खटखटाती जरूर है, लेकिन उस आवाज़ पर ध्यान न देने की वजह से एक दिन वह आवाज़ चुप हो जाती है और कहानी पूरी होते हुए भी किताब अधूरी छूट जाती है।
   
इस दुनिया के आधे से ज्यादा परेशानियों की वजह एक ही है जल्दबाजी।

शादी करते ही सब कुछ वही रहते हुए भी बदल जाता है। इसलिए जिससे खूब प्यार हो उससे कभी शादी नहीं करनी चाहिए।

लड़कियाँ एक समय के बाद घर की मां बन जाती है। फिर पता नहीं कब घर की नींव का हिस्सा हो जाती हैं।

अकेले हो जाना है इस दुनिया की आखिरी सच्चाई है। भले आप भीड़ में मरें या अपने घर के बिस्तर पर। हर आदमी मरते वक्त अकेला ही होता है। इस दुनिया के बाद किसी दूसरी दुनिया की उम्मीद शायद हम सब की आखिरी उम्मीद होती हो। ऐसी दुनिया जो कि हम बना सकते थे ऐसी दुनिया जो हमें ज़िंदगी भर सपनों में दिखती थी, इसलिए शायद हम अपने सपने भूल जाते हैं क्योंकि अगर सपने याद रहे तो हमारे लिए यह दुनिया जीना असंभव हो जाए।

कुछ कहानियां लेखक पूरी नहीं करना चाहता क्योंकि  वैसी कहानियाँ पूरी होते ही दिल दिमाग उंगलियों से हट जाती है। जब तक कहानी अधूरी रहती है तब तक लेखक और पाठक के उंगलियाँ उन्हें बार-बार छूने के लिए बेचैन होती रहती हैं।


~ सभी पंक्तियाँ अक्टूबर जंक्शन उपन्यास से हू-ब-हू लिया गया है।

धन्यवाद 🙏



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