कुठाँव (२०१९) उपन्यास की समीक्षा
जातिवाद एक ऐसी समस्या है जो समाज में लोगों के बीच दूरियां उत्पन्न करती है। ऊंच-नीच का भाव हर धर्म में मौजूद है, चाहे वह हिंदू धर्म हो , मुस्लिम धर्म हो या कोई अन्य धर्म। प्रस्तुत उपन्यास "कुठांव" अब्दुल बिस्मिल्लाह द्वारा रचित एक ऐसा उपन्यास है जिसमें मूल रूप से मुस्लिम समाज में उपस्थित जात-पात को परत दर परत खोल कर सामने रखने का प्रयास किया गया हैं तथा हम देखते हैं कि जिस प्रकार से जातिवाद हिंदुओं में हैं, छोटी जाति,बड़ी जाति का भाव जिस प्रकार से हिंदुओं में जड़ बनी हुई है ठीक उसी तरह मुस्लिम संप्रदाय में भी जातिवाद फैला हुआ है।
कुठाँव शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "अनुप्रयुक्त स्थान"। इसका एक और अर्थ होता है," शरीर का कोमल या सुकुमार अंग"। इन दोनों ही अर्थों का चरितार्थ हमें उपन्यास पढ़ते पढ़ते पता चल जाता है।
उपन्यास के बारे में उपन्यास के बाह्य पृष्ठ में लिखा गया है कि 'कुठाँव' में स्त्री और पुरुष का, प्रेम और वासना का, हिंदू और मुसलमान का, ऊंची-नीची जातियों का एक भीषण परिदृश्य रचा गया है। अब्दुल बिस्मिल्लाह समाज की आंतरिक विडंबना और विसंगतियों को बखूबी चित्रित करते रहे हैं। इस उपन्यास में भी उन्होंने उस खाई को पाटने की कोशिश की है जो रहता तो हर धर्म में है पर दिखता नहीं है। उपन्यास में जातिवाद के खिलाफ लड़ाई को केंद्र बिंदु में रखा गया है।
प्रस्तुत उपन्यास की नायिका सितारा है जिसके इर्द-गिर्द ही उपन्यास की कहानी चलती है। सितारा जो है तो मुसलमान पर नीची जाति की होने के कारण उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है। सितारा की मां "इद्दन" हेला जाति की थी जो पखाना साफ करते थे। इद्दन का जब विवाह हुआ था तो उसका पति उससे जबरदस्ती खुड्डी (जहां शौच किया जाता है।) साफ करने के लिए भेजता था। इद्दन को बहुत घिन आती थी। पर वह अपने किस्मत को कोसते हुई खाँ साहब लोगों के यहां 'कमाई' कमाने जाती थी। पति की मृत्यु के बाद वह गोपालगंज नामक जगह में आकर रहने लगी थी तो उसे वहां खुड्डी साफ नहीं करना पड़ता था।
प्रस्तुत उपन्यास में दलित मुसलमानों की दुरावस्था को दिखाया गया है जिसमें दिखाया गया है कि मुसलमान में भी दलित होते हैं और उन दलितों की व्यवस्था हिंदू में जो दलित है उन्हीं की तरह है।
शारीरिक शोषण की समस्या को इस उपन्यास में दिखाया गया है। सितारा जब तेरह वर्ष की थी तभी गांव के खाँ साहब का बेटा नईम उसके साथ बलात्कार करता है। पर नायिका जिसके लिए किसी पुरुष के शरीर के स्पर्श का पहला अनुभव था, उसे आह्लादकारी लगता है और वह इसकी आदी हो जाती है। जैसे कि उपन्यासकार लिखते हैं.. "सितारा के लिए यह अनुभव आनंदातिरेक से भरा हुआ था। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी पुरुष का संग इतना आनंददायक हो सकता है।"(पृष्ठ-१८)
यही कारण है कि नईम जब शहर पढ़ने चला जाता है तो सितारा गांव के एक हिंदू ठाकुर गजेंद्र सिंह से टकरा जाती है और वह भी सितारा को फंसा लेता है। सितारा जिसे अभी आनंद ही महसूस हो रहा था। वह इन सब से अनजान अपने शरीर को एक मांस के टुकड़े के भांति गजेंद्र सिंह को चबाने के लिए छोड़ दी।
सितारा की मां को यह सब समझ आ रहा था कि उसकी बेटी के साथ पहले नईम और अब ठाकुर गजेंद्र सिंह क्या कर रहे हैं, पर वह कुछ बोल नहीं रही थी बल्कि और छूट दे रही थी क्योंकि वह चाहती थी कि सितारा नईम को अपने प्रेम जाल में फंसाए और वह उसकी शादी खाँ साहब के यहां कर अपनी जाति के कलंक को मिटाएगी। सितारा की मां को दलित होने के कारण बहुत ही प्रताड़ना सहना पड़ता था जिसके प्रत्युत्तर में वह अपनी बेटी का विवाह खाँ साहब के बेटे से कर इस कलंक से मुक्त होना चाहती थी।
उपन्यासकार लिखते हैं "सितारा की मां अपनी बेटी के बारे में नहीं सोच रही थी। वह सोच रही थी अपने वंश के बारे में। उसका वंश क्या था? अब क्या ह?, क्या हो सकता है?___और उसका दिमाग भन्नाने लगा। उस उस भन्नाहट में कई तरह की आवाजें थी। उनमें एक आवाज थी स्त्री की दूसरी आवाज थी जाति की।"(पृष्ठ-२०)
पर अंत में हुआ इसके विपरीत। सितारा का शरीर वह स्थल बन गया जहां कोई भी व्यक्ति आसानी से खेती कर सकता था और कोई कुछ कहने वाला नहीं था नईम उसके साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाता है। नईम के जाने के बाद गजेंद्र सिंह भी बहला फुसलाकर उसका शारीरिक शोषण करता है। पर शादी किसी से नहीं हो पाता। तब उसके मां को पछ्तावा होता है। वह अपनी बेटी से कहती है...."मैंने तुम्हें खिलौना बना दिया। पहले नईम खाँ का और फिर गजेंद्र सिंह का। इन दोनों ने तुम्हारा जिस्म नहीं, मेरे जिस्म को नोचा है। मैंने ऐसा अपनी खुदगर्जी के लिए किया। मेरी बिटिया मुझे माफ कर दो।"(१६२)
जब सितारा की मां को लगता है कि अब बहुत हो गया सितारा का विवाह जल्दी करवा देनी चाहिए तब नईम खाँ जो अब सन्यासी बन गया था, ने गांव में यह हल्ला कर दिया कि सितारा अच्छी लड़की नहीं है। वह हेलीन है, गू साफ करने वाली की बेटी है और उसके नाजायज संबंध गजेंद्र जी से है। इस हल्ला के कारण सितारा के विवाह के क्षेत्र से दूल्हा बिना शादी किए चला जाता है और इद्दन रोती रह जाती है। सितारा अपने कर्म को कोसती है, उसी समय वह बेहोश हो जाती है और ख्वाब देखने लगती है। ख्वाब में कई सीन रहते हैं जिसमें वह किसी स्कूल की अध्यापिका बन गई है और पढ़ा रही है। एक ख्वाब देखती है कि नईम उसके घर आता है और उसे वह पुनः अपनाना चाहता है पर अब सितारा उसे अपना आती नहीं वह कहती हैं___"मुझे अपने सहारे के रूप में किसी मर्द की जरूरत नहीं है। मैं एक स्त्री भी हूं और एक पुरूष भी । आप यहां से जा सकते हैं।"
उपन्यास का अंत ख़ूबसूरत पद के साथ होता है__"और सितारा क्या देखती है कि वह एक पतंग में तब्दील हो गई है और हवा में उड़ी चली जा रही है। उस पतंग के आसपास दूसरी कोई पता नहीं है जो उसकी डोर को काट दे। उड़ते- उड़ते वह पतंग इतनी ऊपर चली जाती है कि वह बिंदु का रूप धारण कर लेती है। फिर वही बिंदु एक सितारा बन जाती है।"
उपन्यास में जातिवाद को समाप्त करने की कोशिश की गई है। जब नईम शहर पढ़ने जाता है तो उसे वहाँ सलमान, रफीक और हुमा मिलते हैं जो मुस्लिम समाज में मौजूद जातिवाद को समाप्त करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। हुमा जो नीची जाति की है पर उसे अपने अधिकार का भान है और वह उसे लेकर ही रहेगी। जात-पात समाप्त करके ही रहेगी। वह कहती है हमें हमारा हक मिलेगा और उसे लेकर रहेंगे।
जातिवाद को सलमान एक छेद के रूप में देखता है। वह कहता है "हमारे समाज का सबसे बड़ा छेद जातिवाद है जिसे हिंदुओं ने तो समय रहते समझ लिया। मगर हम मुसलमान हैं कि अभी तक ना जाने किस छेद में दुबके बैठे हैं।"
जब नईम, रफीक और सलमान में बहस होने लगता है तब सलमान आवेश में आ जाता है। वह कहता है "अरे नईम मियां, आप हैं कहां?किस मुल्क में रहते हैं हम आप? हिंदुस्तानी समाज में जितनी जातियां हिंदू समाज में है। उतनी ही जातियां मुस्लिम समाज में भी क्या आपको पता है? कि मैं नाई हूं और यह रफीक धोबी। मुसलमानों में कुंजड़े हैं,जुलाहे हैं, दुनियां है, चुड़िहार है, मनिहार है, कसाई है और तो और हेला भी है यानी पाखाना साफ करने वाले, जिन्हें पहले मेहतर कहा जाता था और बाद में 'हलालखोर' कहा जाने लगा। हिंदुस्तान में जब मुसलमान आए तो यहां की हर उस जाति के लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया, जो हिंदू समाज में उपेक्षित है क्योंकि इस्लाम के हाथ में मसावत का झुनझुना जो था, मगर झुनझुना सिर्फ बजाने में अच्छा लगता था।..."
यह उपन्यास उपन्यास नहीं एक ऐसा दस्तावेज है जो जातिवाद के मुंह पर थप्पड़ मारता है। प्रत्येक पाठक को पढ़ते हुए रूह कांप जाती है कि किस प्रकार से जातिवाद हर धर्म में फैला हुआ है और उसके आड़ में किस प्रकार से नीचे जातियों का शोषण हो रहा?
इस प्रकार हम देखते हैं कि इस उपन्यास मेहतर समाज की मुसलमान औरत इद्दन और उसकी बेटी सितारा ऊंची जाति के पैसे वाले मुस्लिम मर्दों से लोहा लेती है। स्त्री और पुरुष के और भी आमने-सामने के कई समीकरण यहां रचे गए हैं और यौन को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करके सामाजिक और मर्दाना प्रतिष्ठा को द्विगुणित करने के कुप्रयासों का भी निर्दयता पूर्वक भंडाफोड़ किया गया है।
संदर्भ ग्रंथ- कुठाँव उपन्यास
बहुत ही अच्छी समीक्षा👌👌👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏☺️
Deleteकाफी संवेदना और संवेदनशील है यह समीक्षा |
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद 🙏
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