कवि निशांत का काव्य संग्रह "जीवन हो तुम" की समीक्षा
जीवन हो तुम : प्रेम की अतल गहराइयों में डूबी हुई प्रेम कविताएँ
________________________________________
________________________________________
आज के समय के चर्चित कवि "निशांत" प्रेम के कवि हैं। आप प्रेम करते हैं या प्रेम को गहनता से जानना है तो इनकी प्रेम कविताओं का संग्रह "जीवन हो तुम" से मुलाक़ात
कर सकते हैं। जब आप इनसे मुलाकात कीजिएगा तब यह मुलाकात दोस्ती में तब्दील हो जाएगी । धीरे-धीरे आप में एवं इनकी कविताओं के बीच यह दोस्ती और गाढ़ी होती जाएगी जिसे पढ़ने के पश्चात आप उसे अपने हृदय में बसा लेंगे। जब आप इनकी कविताओं को पढ़िएगा तब इनकी हर पंक्तियों से एक लगाव हो जाएगा और आप इनकी कविताओं के प्रेम रूपी सागर में कब तैरते हुए इस पार से उस पार तक चले जाते हैं पता भी नहीं चलता लेकिन जब पुस्तक पढ़ कर समाप्त करते हैं तब कवि का प्रेम पाठक के जीवन में एक सकारात्मकता का संचार करते हुए जीवन में प्रेम का गूढ़ अर्थ सिखा जाता है----
उन क्षणों में
जब एक स्त्री से बात करो
अपना पुरुषत्व उसे अर्पण कर दो
तुम मैं मेरा तक भूल जाओ
उसकी आँखों में देखो
वहाँ भी वही रहती है उस समय
इस संग्रह की पहली ही कविता हमें यूँ प्रभावित करती है कि हम इसके प्रवाह में प्रवाहित होते चले जाते हैं। कवि "शांतिनिकेतन में कृष्णकली" शीर्षक कविता में लिखते हैं__
जब ऋतु आती है
पेड़ों पर खिलता है पलाश
तुमने खिले हुए पलाश वृक्ष
सचमुच , अपनी आँखों से देखा है ?
अमलतास ?
या गुलमोहर ?
शान्तिनिकेतन चले आओ
चले आओ कोलकाता
चले आओ मेरे पास
मैं ऋतुमती हूँ
मैं हूँ सब आज ।
"एक पुराना फूल" कविता में कवि एक पुराना सूख कर हल्का हो चुका फूल को फूल नहीं दुख मानते हैं जो कवि को जीवित रक्खा है, बचाये रक्खा है। कवि सूखे फूलों को फेंकने नहीं बल्कि संजोकर रखने की बात करते हैं_______
मेरे पास
एक पुराना
सूख कर एकदम हल्का हो गया
काला पड़ गया
फूल है
ना , ना , गुलाब नहीं
साधारण - सा कोई फूल है
सच कहूँ
फूल नहीं दुख है
दुख , जिलाये रक्खा है
मुझे बचाये रक्खा है
मेरे बच्चे
सूखे फूलों को , फेंको मत
सँभालकर रक्खा करो ।
बचपन में किसी न किसी से दिल वाला प्यार कर लेते हैं और उसे बोल भी देते थे बिना झिझक के। कवि "बचपन का प्यार" कविता में कहते हैं___
कसम से
तेरे लिए जान दे दूँगा
अब वो ए
सोच के मुस्कुरा लेता हूँ
कभी ऐसा भी
मैंने ही बोला था
×....×.....×
बचपन का प्यार
भुला नहीं पाता
उतने आवेग से
आज, किसी से कह नहीं पाता
कसम से, तुम्हारे लिए जान दे दूँगा।"
जब हम दुख में होते हैं। चाहे वह कोई भी दुख हो यदि कोई हमसे प्रेम करता है तो अच्छा लगता है। अच्छा लगता है जब कोई कहता है "में तुम्हें प्यार करता हूँ।" कवि इस वाक्य को सारे दुखों पर मलहम के समान मानते हैं___
"दुनिया के सारे दुखों पर
मलहम लगाता है एक वाक्य
'मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।'।"
कवि - निशान्त
कवि अपनी प्रेमिका को संबोधित करते हुए "अर्पिता" शीर्षक कविता में दूसरे प्रेम को पहले प्रेम से श्रेष्ठ बताते हैं। वे कहते हैं__
मेरा पहला प्यार नहीं बन पायी
इसका तुम्हें अफसोस रहा है
मैं कैसे समझाऊँ
दूसरा प्यार ही प्यार होता है
पहला तो दूध-भात होता है!
×............×............×
पहला प्रेम
प्रेम नहीं आकर्षण था
दूसरा प्रेम ही प्रेम है
समझा करो अर्पिता।
हम जब प्रेम में होते हैं तो हमें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता है। जब हम साथ नहीं होते हैं तो प्रिय को सुनने का मन करता है। कवि के लिए यह सुनना, सुनना नहीं बल्कि देखना है। "सुनना नहीं देखना" शीर्षक कविता में कवि कहते हैं___
कितना छोटा-सा वाक्य है
'रख दो'
और फोन काटकर
इतनी दूर चला जाता हूँ
जहाँ से तुम दिखायी नहीं देतीं
तुम्हारी आवाज़ एक दूरबीन है
मैं तुम्हें सुनता नहीं
देखता हूँ।"
इसी प्रकार इस संग्रह की हर कविताएँ प्रेम से पूर्ण है। आज के समय में जब चारों तरफ राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई है। समाज में हिंसा बढ़ रही हो । ऐसे में प्रेम पर समर्पित यह कविता संग्रह पढ़ना हमें सुख देता है।
बहुत खूब भईया ❣️
ReplyDeleteWow nice blog, thanks for sharing.
ReplyDeleteAmrutabanee by Sri Nrusinha Prasad Mishra
Order Odia Books
Odia Books Online
बहुत बहुत धन्यवाद मैम
Delete