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होमबाउंड : संघर्ष और उम्मीद की कहानी

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छात्र जीवन के बाद नौकरी की चाहत हर किसी को होती है। बिहार आदि राज्यों के छात्र दसवीं-बारहवीं उत्तीर्ण करते ही नौकरी की तैयारी शुरू कर देते हैं। उनके मष्तिष्क में ज्यादा बड़ा सपना नहीं रहता है। घर किसी तरह चल जाए, खेत में काम करते माता पिता को कुछ आराम दे सके, बस यही उनकी कोशिश होती है। इसी कोशिश को पूर्णता प्रदान करने के लिए वे निकल पड़ते हैं कंस्टेबल, रेलवे आदि की नौकरी की तैयारी में। इसी तैयारी में वे अपना सारा समय देते हैं। परिक्षा होती है। फिर या तो परिक्षा में धांधली होती है या सब कुछ अच्छे से हो जाने के बाद भी एक - दो साल तक रिजल्ट का कोई अता-पता नहीं रहता। रिजल्ट आता है तो जोइनिंग लेटर आने में समय। और इस बीच बहुत प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, देखते - देखते उम्र निकल जाती है। ग्रेजुएशन आदि नहीं कर पाते। अंत में बस एक उपाय बचता है मजदूरी।  होमबाउंड इसी संघर्ष की कहानी है जो जाति, धर्म, स्त्री आदि के साथ कोरोनाकाल के संघर्ष को दिखलाती  है। कहानी दो दोस्तों चंदन और सोएब की है दोनों गरीब किसान-मजदूर घर के बेटे हैं। उन्हें घर चलाने के लिए नौकरी चाहिए। पर नौकरी म...