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लापता लेडीज : गुमशुदा 'जिंदगी' की तलाश

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  आज से सिर्फ बीस-तीस वर्ष पहले गाँव में जन्म लेना और आसानी से अपनी जिंदगी अपनी महत्वाकांक्षा के अनुसार जीना बहुत मुश्किल थी और अगर आपका जन्म एक लड़की के रूप में हुआ हो तब वह मुश्किल सौ गुना बढ़ जाती है। जब लड़की माईके में रहती है उसकी जिंदगी घर से खेत, खेत से घर के ईर्द गिर्द घूमती रहती है और जब वह ससुराल जाती है तो वहाँ इन सब के अलावा पति की परिचर्या भी करनी पड़ती है। उसका हर कहा सुनना पड़ता है। वह पति, परमेश्वर बन जाता है। माईके में उसे इस प्रकार ढाला जाता है कि थोड़ी बड़ी होते ही उसके मन में शादी के सपने सजने लगते हैं। पति को परमेश्वर मानना। पति का नाम मुँह से न लेना। हमेशा घुँघट काढ़े रहना आदि- आदि अनेक ऐसे मोह है जिसके पाश में गाँव-देहात की लड़की जन्म के बाद से ही आने लगती है। इसी पाश रूपी जिंदगी में से यदि कोई गाँव की लड़की पढ़ने-लिखने का सपना देखती है। पढ़ कर कुछ बनने का सपना देखती है तब उसे विविध प्रकार से इमोशनल ब्लैकमेल किया जाता है। "जैसे माता पिता का यह कहना कि यदि तुम हमारी बात नहीं सुनोगी तो हमारा मरा मुँह देखोगी।" वह लड़की जिसका माता-पिता के सिवा कोई अपना है न

अधूरे स्वाँगों के दरमियान : देशज मिट्टी से पनपी कविताएँ

सुधांशु फ़िरदौस आज हिंदी साहित्य जगत में एक जाना माना नाम हो गया है। 2021 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित फ़िरदौस युवा कवि हैं । मैथ्स का विद्यार्थी रहे फ़िरदौस के पहले काव्य संग्रह "अधूरे स्वाँगों के दरमियान" पर यह पुरस्कार मिला है। किसी भी कवि या साहित्यकार के लिए यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है कि प्रारंभ में ही उसे इतना बड़ा सम्मान मिल जाए तो भविष्य में उसे उस जिम्मेदारी को निभाना पड़ता है। युवा कवि फ़िरदौस की कविताएँ पढ़ते वक्त जिम्मेदारी निभाने वाली संभवानायें दिखलाई पड़ती है।  मैं इनकी कविताओं पर टिप्पणी करूँ इससे पहले आप इनकी यह कविता पढ़िए और इस युवा कवि की अनुभवशीलता को पहचानिए। एक कवि जो अभी युवा है उसे अधूरापन से कितना प्रेम है देखिए- "इतना प्रेम है अधूरे पन से/ कि अब कोई स्वाँग पूरा नहीं करना चाहता/ सुखी होना पाप है!/ एक छलाँग,/ एक बार में पूरा नहीं होता स्वाँग,/ अधूरा ही रहता है।" १ यही नहीं जब कवि कहता है .." मृत्यु कवि के लिए एक छंद से दूसरे छंद में लगाई गई छलाँग है । "२ तो स्पष्ट हो जाता है कि यह कवि अनुभव के कोख से जन्मा

"ईश्वर को मरते देखा है!"-- स्वयं से साक्षात्कार करवाती कविताएँ

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क्या आपने कभी ईश्वर को मरते हुए देखा है? यदि नहीं! और ऐसे में आपको कोई रचना दिख जाए जिसका नाम हो "ईश्वर को मरते हुए देखा है!" तो निश्चित है यह आपके अंदर प्रश्न उठेगा के लेखक या कवि ने ऐसा क्यों लिखा है? क्यों  वह ईश्वर जो सबका सृजन करता है उसे मरते हुए देख रहा है? इन सभी प्रश्नों का उत्तर आपको युवा कवि और चित्रकार रोहित प्रसाद 'पथिक' का पहला काव्य संग्रह "ईश्वर को मरते देखा है!" से प्राप्त होगा। इस काव्य संग्रह में कवि ने मनुष्य को मनुष्य होने की सहूलियत दिया है और समाज में हो रहे अत्याचार, तंत्र  की अव्यवस्था आदि को अपनी कविताओं के माध्यम से दिखाया है। एक युवा कवि जिसमें अभी-अभी अंकुरण हुई हो और कु छ समय म ें ही पूर्णत: परिपक्वता प्राप्त कर लिया हो एवं जिसका पहला काव्य संग्रह ही गंभीर विषय पर आधारित हो तो वाकई उस कवि ने कुछ समय में ही इस दुनिया को समझ चुका है। वह समझ चुका है इस समाज में किस प्रकार के लोग रहते हैं, आज का समाज किस प्रकार का है? वह समाज के हर पहलू को देख-परख लिया है। जैसा कि युवा कवि निशांत इस काव्य संग्रह की भूमिका में लिखते हैं..."

"सारे सृजन तुमसे हैं" काव्य संग्रह की समीक्षा

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  सारे सृजन तुमसे है : प्रेम कविताओं का कोलाज( अंत:मन के  संवाद से उत्पन्न कविताएँ)---- "सारे सृजन तुमसे हैं" नरेश गुर्जर का प्रेम कविताओं का संग्रह है। जिसे पढ़कर आप कवि की और भी कविताएँ पढ़ने के लिए उत्सुक हो जायेंगे।  सबसे बड़ी बात यह है कि यह इनका पहला काव्य संग्रह है और इसी के माध्यम से इन्होंने पाठकों के हृदय में अपना स्थान बना लिया है। इनकी कविताएँ स्वयं से किये संवाद है। अनकही बातें हैं जो काव्य संग्रह के रूप में हमारे समक्ष प्रस्तुत हुआ है। स्वयं कवि आत्मकथ्य में कहते हैं..."मेरी कविताएं दरअसल मेरे वह संवाद हैं जो मैंने अपने आप से किये हैं, वो बातें हैं जो हमेशा अनकही रहीं, वो बीज है जो कभी उग नहीं सके थे, यह वो कल्पनाएं हैं जिनके कारण मैं कठिन परिस्थितियों में काम करते हुए भी हरा-भरा रहा, वो पीड़ाएं हैं जो अंततः प्रेम में परिवर्तित हो गईं।              बे-लिबास ही आ जाते हैं लबों पर             मेरे ख़याल , उम्र में आज भी बच्चे हैं।" इस काव्य संग्रह की पहली कविता है "चूमना"। जिसमें कवि प्रेम में समर्पण के भाव का संदेश देते हुए कहते हैं कि यदि

कवि निशांत का काव्य संग्रह "जीवन हो तुम" की समीक्षा

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 जीवन हो तुम : प्रेम की अतल गहराइयों में डूबी हुई प्रेम कविताएँ ________________________________________ ________________________________________ आज के समय के चर्चित कवि "निशांत" प्रेम के कवि हैं।  आप प्रेम करते हैं या प्रेम को गहनता से जानना है तो इनकी प्रेम कविताओं का संग्रह "जीवन हो तुम" से मुलाक़ात कर सकते हैं। जब आप इनसे मुलाकात कीजिएगा तब यह मुलाकात दोस्ती में तब्दील हो जाएगी । धीरे-धीरे आप में एवं इनकी कविताओं के बीच यह दोस्ती और गाढ़ी होती जाएगी जिसे पढ़ने के पश्चात आप उसे अपने हृदय में बसा लेंगे। जब आप इनकी कविताओं को पढ़िएगा तब इनकी हर पंक्तियों से एक लगाव हो जाएगा और आप इनकी कविताओं के प्रेम रूपी सागर में कब तैरते हुए इस पार से उस पार तक चले जाते हैं पता भी नहीं चलता लेकिन जब पुस्तक पढ़ कर समाप्त करते हैं तब कवि का प्रेम पाठक के जीवन में एक सकारात्मकता का संचार करते हुए जीवन में प्रेम का गूढ़ अर्थ सिखा जाता है---- उन क्षणों में जब एक स्त्री से बात करो अपना पुरुषत्व उसे अर्पण कर दो तुम मैं मेरा तक भूल जाओ उसकी आँखों में देखो वहाँ भी वही रहती है उस समय    

हिंदी दिवस विशेष

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हिंदी; एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में ---------------------------------------------- आज हिंदी दिवस है। आज ही के दिन सन् १९४९ को हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाया गया था और आज भी यह राजभाषा के रूप में विद्यमान है। हम, आप और सभी जानते हैं कि आज हिंदी सिर्फ भारत में नहीं बल्कि विश्व के प्राय: हर देश में बोली जाती है और यह हमारे लिए गर्व की बात है  कि हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। चीन की भाषा मंदारिन दुनिया की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है पर एक रिपोर्ट के मुताबिक आज हिंदी इतनी लोकप्रिय हो गई है कि आने वाले दिनों में यह मंदारिन से भी ज़्यादा बोली जाने लगेगी। यह हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात है कि जिस जो हमारी मातृभाषा है वह दुनिया की सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली भाषा है। पर, हमारे देश में अब स्थिति उल्टी होती जा रही है । एक तरफ दूसरे देश के लोग हिंदी की संस्कृति आदि जानने के लिए हिंदी सीख रहे और भारत आकर शोध कर रहे वहीं हम भारतीय अंग्रेजी के पीछे भाग रहे । इसमें अंग्रेजी का कोई दोष नहीं यह सब भूमंडलीकरण का प्रभाव है जो आज सब देशों क े सर चढ़ कर

मनीषा कुलश्रेष्ठ का उपन्यास " मल्लिका " की समीक्षा

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इति हास में खोयी हुई नारी और ' मल्लिका ' उपन्यास:--- मल्लिका इतिहास की एक ऐसी उपेक्षित महिला है जिसने साहित्य में तो अपना अमूल्य योगदान दिया लेकिन उनके अवदान को किसी हिंदी साहित्य के इतिहासकार ने नहीं समझा। यही कारण है कि हम मल्लिका के बारे में इतिहास के किसी भी पन्ने में नहीं पड़ते हैं। इसी उपेक्षित महिला के महत्व को समकालीन कथा लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ (जो कि अपनी विशेष प्रकार की कथाओं के लिए प्रसिद्ध है) ने उजागर करने का प्रयास किया है।           मनीषा कुलश्रेष्ठ जी ने बहुत ही बारीकी से इतिहास को खंगाला है, तत्पश्चात उन्होंने मल्लिका के जीवन को उघाड़ने का प्रयास किया है। "मल्लिका " उपन्यास में लेखिका ग़ल्प  तथा कल्पना के पुट  से ऐसी रचना का निर्माण किया है जो अतुलनीय है जिसका कोई तोड़ नहीं है। जैसा कि मनीषा जी ने उपन्यास के प्राक्कथन में ही स्पष्ट कर दिया है कि " मल्लिका की कथा ग़लत होते हुए भी ऐसे संपूर्ण व्यक्ति की कहानी है जो हाड़-मांस से बना, किन्हीं बीते वक्तों में भी जीता हुआ, सांस लेता था। उसके होने के अल्प ही सही ओझल ही सही मगर प्रमाण है। ( मल्लिका